शनिवार 8 नवंबर 2025 - 18:20
इमाम सज्जाद (अ) की विलादत और आज का युवा, किरदार साज़ी का नया सफ़र

हौज़ा / १५ जमादिल अव्वल का मुबारक दिन तारीख़ के सफ़हात पर एक नूरी चराग़ की मानिंद है। यह वह दिन है जिसने इंसानियत के सफ़र में इबादत की लतीफ़ खुशबू, दुआ की पाकीज़गी और किरदार के वक़ार का इज़ाफ़ा किया। इसी सआत में आग़ोश-ए-ज़हरा के घराने में इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अलैहिस सलाम) की विलादत हुई। वह हस्ती जिसकी ज़िंदगी ने कर्बला के दर्द को हिकमत-ए-इलाही के पयाम में बदल दिया और टूटे हुए मआशरे को सब्र, रज़ा और अख़लाक़ की नई बुनियाद अता की।

लेखकः मौलाना अक़ील रज़ा तुराबी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी ! १५ जमादिल अव्वल का मुबारक दिन तारीख़ के सफ़हात पर एक नूरी चराग़ की मानिंद है। यह वह दिन है जिसने इंसानियत के सफ़र में इबादत की लतीफ़ खुशबू, दुआ की पाकीज़गी और किरदार के वक़ार का इज़ाफ़ा किया। इसी सआत में आग़ोश-ए-ज़हरा के घराने में इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अलैहिस सलाम) की विलादत हुई। वह हस्ती जिसकी ज़िंदगी ने कर्बला के दर्द को हिकमत-ए-इलाही के पयाम में बदल दिया और टूटे हुए मआशरे को सब्र, रज़ा और अख़लाक़ की नई बुनियाद अता की।

इमाम सज्‍जाद (अलैहिस सलाम) की विलादत सिर्फ़ एक तारीखी वाक़ेआ नहीं है। यह हर दौर के नौजवान को किरदारसाज़ी के नए सफ़र की दावत देती है—वह सफ़र जिसकी मंज़िल इंसानियत की तामीर, अख़लाक़ की बुलंदी और रूह की बेदारी है।

विलादत-ए-सज्‍जाद (अलैहिस सलाम): कर्बला के पस-ए-मनज़र में एक नूरी आग़ाज़

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अहैलिस सलाम) की विलादत ऐसे ख़ानदान में हुई जो ईमान, अद्ल और वफ़ा का सरचश्मा था। आप की तर्बियत सैय्यदा ज़ैनब (अलैहिस सलाम), इमाम हुसैन (अलैहिस सलाम) और इमाम हसन (अलैहिस सलाम) जैसे अज़ीम किरदारों के माहौल में हुई। यही माहौल नौजवानी की वह पहली दरसगाह साबित होता है जिसमें किरदार की बुनियाद रखी जाती है।

जब किसी शख़्सियत की विलादत नूरानी हो, नसब पाकीज़ा हो, मशाहिदा कर्बलायी हो और किरदार अज़ीम हो तो उसकी हयात सिर्फ़ फ़र्द की नहीं, बल्कि ज़माने की दरसगाह बन जाती है।

इमाम सज्‍जाद (अलैहिस सलाम): नौजवानों के लिए किरदारसाज़ी का कामिल नमूना

नौजवानी ख़्वाहिशात, तवानाई और इमकानात का ज़माना है। इसी मरहले में इंसान की शख्सियत या तो बुलंदी हासिल करती है या सतहीत में खो जाती है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अलैहिस सलाम) की ज़िंदगी नौजवानों के लिए यह वाज़ेह करती है कि अस्ल अज़मत न तो जिस्म की ताक़त में है, न ज़बान के हुनर में, न सिर्फ़ तालीम के अतीए में, और न दौलत के दिखावे में। हक़ीक़ी अज़मत किरदार, बसीरत, इस्तिक़लाल और बातिनी पाकीज़गी में है।

इमाम (अलैहिस सलाम) का अंदाज़ नौजवान के अंदर मौजूद सलाहियतों को सिम्त देता है और उसकी शख्सियत को निखारता है।

किरदारसाज़ी का पहला स्तंभ: बंदगी और ख़ुदा से रिश्ता

इमाम सज्‍जाद (अलैहिस सलाम) सैय्यदुस्साजेदीन कहलाए। उनका सज्दा सिर्फ़ जिस्मानी मशक़्क़त या रोज़मर्रा के वज़ाइफ़ का नाम नहीं था। उनकी इबादत ख़ुज़ू से ख़ुदी की तामीर, रियाज़त से किरदार की पाकीज़गी और दुआ से बसीरत की बेदारी का नाम थी।

सहीफ़ा सज्जादिया नौजवान को बताता है कि दुआ महज़ माँगने का अमल नहीं बल्कि रूह और फ़िक्र को बुलंद अहदाफ़ के लिए तैयार करने का ज़रिया है। आज के नौजवान के लिए सफ़र यहीं से शुरू होता है — ख़ालिक़ की मआरिफ़त, दिल की हया और सोच की शफ़ाफ़ियत से।

किरदारसाज़ी का दूसरा स्तंभ: इल्म, फ़हम और बसीरत

इमाम सज्‍जाद (अलैहिस सलाम) का ज़माना फ़िक्री इन्तिशार का ज़माना था। आपने इबादत की आड़ में एक अ़मीक़ इल्मी इंक़लाब बरपा किया। सहीफ़ा सज्जादिया की दुआओं में तौहीद का फ़लसफ़ा, अख़लाक़ का निज़ाम, मआशरती हुक़ूक़, समाजी ज़िम्मेदारियाँ, मआशी तक़सीम और इंसानी अदब सब मौजूद हैं।

आज का नौजवान मुख़्तलिफ आवाज़ों और बेशुमार इत्तिलाआत के हुजूम में मुंतशिर होता है। ऐसे माहौल में इमाम सज्‍जाद (अलैहिस सलाम) का पैग़ाम यह बनता है कि तालीम हासिल करो मगर फ़हम के साथ, सुनो मगर शउर के साथ, देखो मगर बसीरत के साथ। इल्म जब किरदार का हिस्सा बन जाए तो इंसान भी मजबूत होता है और मआशरा भी।

किरदारसाज़ी का तीसरा स्तंभ: अख़लाक़-ए-सज्‍जाद (अलैहिस सलाम) और इंसानी वक़ार

इमाम सज्‍जाद (अलैहिस सलाम) के अख़लाक़ का हर बाब नौजवान के लिए रौशनी का चराग़ है। दुश्मन के साथ हिल्म, ग़ुलामों पर मेहरबानी, यतीमों व फ़क़ीरों की रातों में ख़ुफ़िया मदद, वालिदैन के हुक़ूक़ में बे-मिसाल एहतराम, बाज़ार में ग़लती करने वाले ताजिर को दरगुज़र, और ज़ालिम के सामने वक़ार के साथ खड़ा रहना — यह सब बताता है कि अख़लाक़ कमज़ोरी नहीं बल्कि ताक़त है। अख़लाक़ ही वह दरवाज़ा है जिससे मआशरे के दिल खुलते हैं और शख्सियत निखरती है।

किरदारसाज़ी का चौथा स्तंभ: सब्र, इस्तिक़ामत और हौसला

कर्बला के बाद जो कुछ इमाम सज्‍जाद (अलैहिस सलाम) पर गुज़रा, वह तारीख़ की सबसे सख़्त आज़माइशों में से था — कैद, भूख, ज़ख़्म, तज़हीक, मेहनत। मगर आपने सब्र का दामन नहीं छोड़ा। यही सबक़ नौजवान को मुश्किलात में क़ुव्वत बख़्शता है।

इम्तेहान आए तो हिम्मत न हारो। नाकामी हो तो गिर कर नहीं बल्कि उठकर देखो। रास्ता रुके तो क़दम बदल दो मगर सफ़र जारी रखो। लोग तंज़ करें तो उनकी बात नहीं, अपने हदफ़ को देखो। हालात इंसान को नहीं बदलते — इंसान हालात को बदलता है।

किरदारसाज़ी का पाँचवाँ स्तंभ: मआशरती ख़िदमत और ज़िम्मेदारी

इमाम सज्‍जाद (अलैहिस सलाम) रातों को मदीना के फ़ुक़रा की मदद किया करते थे। कोई नहीं जानता था पर आसमान गवाह था कि सज्‍जाद (अलैहिस सलाम) इबादत के साथ ख़िदमत का भी सबक़ दे रहे हैं। आज का नौजवान जब अपने माहौल में कमज़ोर तलबा की मदद, बीमारों की तीमारदारी, समाजी बेदारी, दीनी ख़िदमत और तालीमी रहनुमाई का किरदार अदा करता है, तो गोया इमाम सज्‍जाद (अलैहिस सलाम) के रास्ते पर चल रहा होता है। ख़िदमत वह ज़बान है जो नौजवान को दिलों में महबूब बना देती है।

आज का नौजवान और किरदारसाज़ी का नया सफ़र

दुनिया की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी नौजवान को ज़हनी इन्तिशार, अख़लाक़ी दबाव, समाजी तनहाई और रूहानी कमज़ोरी की तरफ़ ढकेलती है। इमाम सज्‍जाद (अलैहिस सलाम) की विलादत हमें यह समझाती है कि अगर नौजवान अपने अंदर इबादत की पाकीज़गी, इल्म की रौशनी, अख़लाक़ की नरमी और ख़िदमत की गर्मी पैदा कर ले, तो वह न सिर्फ़ अपनी ज़िंदगी बल्कि पूरे मआशरे की राह बदल सकता है।

यही वह नया सफ़र है जिसकी दावत आज का दिन देता है — एक ऐसा सफ़र जिसकी मंज़िल इंसान के बाहर नहीं बल्कि उसके अंदर है। जहां जीत दूसरों पर नहीं, अपने नफ़्स पर है। जहां बुलंदी शोहरत में नहीं, बल्कि किरदार में है।

इमाम सज्‍जाद (अलैहिस सलाम) की विलादत नौजवानों को याद दिलाती है कि हक़ीक़ी अज़मत किरदारसाज़ी में है — वह किरदार जो सज्दे की रौशनी से चमकता हो, वह बसीरत जो दुआ से परवान चढ़ती हो, वह इल्म जो ख़िदमत में ढल जाए और वह अख़लाक़ जो दिलों को जोड़ने की सलाहियत रखता हो।

आज का नौजवान अगर इस रास्ते का इन्तिख़ाब कर ले तो उसका सफ़र कोई नया कर्बला नहीं लाता, बल्कि एक नई मदीना-ए-हिदायत बसाता है।

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